कनान के मार्ग पर चलते हुए याकूब ने अपने भाई एसाव को सन्देश भेजा था।
याकूब एसाव के अनुग्रह की दृष्टि चाहता था।
याकूब डर गया और अपने लोगों को दो भागों में बांट दिया कि यदि एसाव आक्रमण करे तो दूसरा दल भाग जाये।
याकूब डर गया और अपने लोगों को दो भागों में बांट दिया कि यदि एसाव आक्रमण करे तो दूसरा दल भाग जाये।
याकूब ने यहोवा से विनती की कि वह उसे एसाव के हाथों से बचा ले।
याकूब ने यहोवा को स्मरण कराया कि उसने याकूब को समृद्धि प्रदान करने की और उसके वंशजों को समुद्री बालू के किनकों के समान बढ़ाने की प्रतिज्ञा की है।
याकूब सोचता था की यह भेंट जो मेरे आगे-आगे जाती है, उसके द्वारा वह एसाव के क्रोध को शान्त करेगा कि जब वह उस से मिले तब वह उसे स्वीकार करेगा।
उसने अपनी पत्नी और दासियों को बच्चों के साथ यब्बोक नदी के पार भेज दिया था।
याकूब एक पुरूष के साथ सुबह तक मल्ल युद्ध करता रहा।
उस पुरूष ने याकूब की जांघ को छुआ;और याकूब की जाँघ की नस चढ़ गई।
याकूब ने उसे विवश किया कि वह उसे आशीर्वाद दे।
उसने कहा कि याकूब का नाम अब इस्राएल होगा।
याकूब ने कहा कि उसने परमेश्वर को आमने-सामने देखा है।
उस रात के बाद याकूब अपनी जांघ की क्षति के कारण सदा के लिए लंगड़ाता रहा।