1
हे भाइयों, हम अपने प्रभु यीशु मसीह के आने, और उसके पास अपने इकट्ठे होने के विषय में तुम से विनती करते हैं,
2
कि किसी आत्मा के प्रकाशन से या किसी वचन या पत्री को पढ़कर, जो मानो हमारी ओर से हो, अचानक से अपने मन को अस्थिर न हो जाने देना और न व्याकुल होना, यह समझकर की प्रभु का दिन आ पहुँचा है ।
3
किसी रीति से किसी के धोखे में न आना क्योंकि वह दिन तब तक न आएगा, जब तक परमेश्वर से मुँह मोड़ लेने का विद्रोह नहीं होता और वह अधर्मी पुरुष अर्थात् विनाश का पुत्र प्रगट न हो;
4
जो विरोध करता है, और हर एक से जो परमेश्वर, या पूज्य कहलाता है, अपने आप को बड़ा ठहराता है, यहाँ तक कि वह परमेश्वर के मन्दिर में बैठकर अपने आप को परमेश्वर प्रगट करता है। (यहे. 28:2, दानि. 11:36-37)
5
क्या तुम्हें स्मरण नहीं, कि जब मैं तुम्हारे साथ था, तो तुम्हें ये बातें बतायी थी?
6
और अब तुम उसे जान चुके हो, जो उसे रोक रही है, ताकि वह अपने उचित समय में प्रगट हो।
7
क्योंकि अधर्म का भेद अब भी कार्य करता है, पर अभी एक रोकनेवाला है, और जब तक उसे दूर न हटा दिया जाए, वह रोके रहेगा।
8
तब वह अधर्मी प्रगट होगा, जिसे प्रभु यीशु अपने मुँह की फूँक से मार डालेगा* और अपने आगमन के तेज से भस्म कर देगा। (अय्यू. 4:9, यशा. 11:4)
9
उस अधर्मी का आना, शैतान के अनुसार सब प्रकार के झूठे सामर्थ्य, चिन्हों, और अद्भुत कामों के साथ होगा।
10
और नाश होनेवालों के साथ हर प्रकार के बुराई और अधर्म के धोखे होंगे; क्योंकि उन्होंने सत्य से प्रेम को ग्रहण नहीं किया, जिससे उनका उद्धार होता।
11
और इसी कारण परमेश्वर उनमें एक भटका देनेवाली सामर्थ्य को भेजेगा ताकि वे झूठ पर विश्वास करें*।
12
और जितने लोग सत्य पर विश्वास नहीं करते, वरन् अधर्म से प्रसन्न होते हैं, सब दण्ड पाएँ।
13
पर हे प्रभु में प्रिय भाईयों, तुम्हारे विषय में हमें सदा परमेश्वर का धन्यवाद करते रहना चाहिए, कि परमेश्वर ने आदि से तुम्हें चुन लिया; कि आत्मा के द्वारा पवित्र बनकर, और सत्य पर विश्वास करके उद्धार पाओ। (इफि. 1:4-5, 1 पत. 1:1-5, व्य. 33:12)
14
जिसके लिये उसने तुम्हें हमारे सुसमाचार बताने के द्वारा बुलाया, कि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह की महिमा को प्राप्त करो।
15
इसलिए, हे भाइयों, स्थिर रहो; और जो शिक्षा तुमने हमारे वचन या पत्र के द्वारा प्राप्त किया है, उन्हें थामे रहो।
16
हमारा प्रभु यीशु मसीह आप ही, और हमारा पिता परमेश्वर, जिस ने हम से प्रेम रखा और अनुग्रह से अनन्त शान्ति और उत्तम आशा दी है,
17
तुम्हारे मनों में शान्ति दे*, और तुम्हें हर एक अच्छे काम में और वचन में दृढ़ करे।।