4 क्योंकि जब परमेश्वर ने, उन दूतों को जिन्होंने पाप किया, नहीं छोड़ा* और उन्हें नरक की अँधेरी कोठरियों में डाल दिया ताकि न्याय के दिन तक बन्दी रहें। 5 और प्राचीन युग के संसार को भी न छोड़ा,परन्तु अधर्मी संसार पर महा जल-प्रलय भेजकर, नूह जो धार्मिकता का प्रचारक था और उसके समेत आठ व्यक्तियों को बचा लिया; (उत्प. 6:5-8, उत्प. 7:23) 6 और सदोम और अमोरा के नगरों को विनाश का ऐसा दण्ड दिया, कि उन्हें भस्म करके राख में मिला दिया ताकि वे अधर्मी लोगों के लिये एक दृष्टान्त बनें (यहू. 1:7, उत्प. 19:24)
7 और धर्मी लूत को, जो अधर्मियों के अशुद्ध चाल-चलन से बहुत दुःखी था, बचाया। (उत्प.19:12-13, 15) 8 (क्योंकि वह धर्मी उनके बीच में रहते हुए और उनके अधर्म के कामों को देख देखकर, और सुन सुनकर, हर दिन अपने सच्चे मन को पीड़ित करता था)। 9 तो प्रभु, धर्मियों को परीक्षा में से निकाल लेना और अधर्मियों को न्याय के दिन तक दण्ड की दशा में रखना जानता है। 10 विशेष करके उन्हें जो अशुद्ध अभिलाषाओं के पीछे शरीर के अनुसार चलते और प्रभुता को तुच्छ जानते हैं। वे ढीठ और घमंडी हैं, और ऊँचे पदवालों का अपमान करने से भी नहीं डरते। 11 परन्तु स्वर्गदूत, जो शक्ति और सामर्थ्य में उनसे बड़े हैं, प्रभु के सामने उन्हें बुरा-भला कहकर दोष नहीं लगाते।12 पर ये लोग निर्बुद्धि पशुओं के समान ही हैं, जो पकड़े जाने और नाश होने के लिये उत्पन्न हुए हैं; और वे जिन बातों को जानते ही नहीं, उनके विषय में औरों को बुरा-भला कहते हैं। वे भी इन्हीं पशुओं के समान नाश हो जाएंगे और अपनी सड़ाहट में आप ही सड़ जाएँगे। 13 औरों का बुरा करने के बदले उन्हीं का बुरा होगा। उन्हें दिन दोपहर सुख-विलास करना भला लगता है; परन्तु ये कलंक और दोष है और जब वे तुम्हारे साथ खाते पीते हैं, तो अपने कपटपूर्ण कार्यों का आनंद लेते हैं। 14 उनकी आँखों में व्यभिचार है*, और वे पाप किए बिना रुक नहीं सकते। वे अस्थिर मन वाले लोगों को फुसला लेते हैं। उनका मन लालच का आदि हो गया है, वे श्राप के सन्तान हैं।
15 वे सीधे मार्ग को छोड़कर भटक गए हैं, और बओर के पुत्र बिलाम के मार्ग पर हो लिए हैं जिस ने अधर्म की मजदूरी को प्रिय जाना; (गिन. 22:5-7) 16 पर उसके अपराध के विषय में उसे झिड़का गया, कि एक गदही ने, जो बोल नहीं पाती है, मनुष्य की बोली से उस भविष्यद्वक्ता को उसके पागलपन से रोका। (गिन. 22:26-31) 17 ये लोग सूखे कुएँ और आँधी के उड़ाए हुए बादल हैं, उनके लिये अनन्त अंधकार ठहराया गया है। 18 वे व्यर्थ ही घमण्ड से भरी बातों से उन लोगों को लुचपन की शारीरिक अभिलाषाओं में फँसा लेते हैं, जो भटके हुओं में से अभी निकल ही रहे हैं। 19 वे उन्हें स्वतंत्र होने की प्रतिज्ञा तो देते हैं, परन्तु आप ही विनाश के दास हैं; क्योंकि जो मनुष्य जिससे हार गया है, वह उसका दास बन जाता है। 20 और यदि वे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के ज्ञान के द्वारा संसार की नाना प्रकार की अशुद्धता से बच निकले, और फिर से उनमें फँसकर हार गए, तो उनके अंत की दशा पहली से भी बुरी हो गई है। 21 क्योंकि धार्मिकता के मार्ग का न जानना ही उनके लिये भला होता, बजाय इसके कि वे उसे जानकर, उस पवित्र आज्ञा से फिर जाते, जो उन्हें सौंपी गई थी। 22 उन पर यह कहावत ठीक बैठती है कि: “कुत्ता अपनी छाँट की ओर लौटता है।” और “नहलाई हुई सूअरनी कीचड़ में लोटने के लिये फिर चली जाती है।” (नीति. 26:11)