3 क्योंकि उसके ईश्वरीय सामर्थ्य ने हमें सब कुछ, जो जीवन और भक्ति से सम्बन्ध रखता है, उस के ज्ञान के द्वारा दिया है, जिस ने हमें अपनी ही महिमा और उत्तमता के अनुसार बुलाया है। 4 और जिनके द्वारा उसने हमें बहुमूल्य और बहुत ही बड़ी प्रतिज्ञाएँ दी हैं ताकि इनके द्वारा तुम संसार में बुरी अभिलाषाओं के कारण होने वाले भ्रष्टाचार से बचकर ईश्वरीय स्वभाव में सहभागी हो जाओ।
5 और इसी कारण तुम सब प्रकार का यत्न करके, अपने विश्वास में भलाई, भलाई में ज्ञान, 6 ज्ञान में संयम, संयम में धीरज, धीरज में भक्ति; 7 भक्ति में भाईचारे की प्रीति, और भाईचारे की प्रीति में प्रेम, बढ़ाते जाओ। 8 क्योंकि यदि ये बातें वर्तमान में तुम में हों और बढ़ती जाएं, तो वे तुम्हें हमारे प्रभु यीशु मसीह की पहचान में निकम्मे और निष्फल न होने देंगी। 9 क्योंकि जिसमें ये बातें नहीं, वह अंधा है, और धुन्धला देखता है*, और अपने पुराने पापों से धुलकर शुद्ध होने को भूल बैठा है। 10 इस कारण हे भाइयों, अपने बुलाए जाने, और चुन लिये जाने को सिद्ध करने का भली भाँति यत्न करते जाओ, क्योंकि यदि ऐसा करोगे, तो कभी भी ठोकर न खाओगे; 11 क्योंकि इस रीति से तुम हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के अनन्त राज्य में बड़े आदर के साथ प्रवेश करने पाओगे।
12
इसलिए मैं तुम्हें इन बातों की सुधि दिलाने को सर्वदा तैयार रहूँगा, यद्यपि तुम ये बातें जानते हो और जो सत्य वचन तुम्हें मिला है, उसमें दृढ़ बने रहते हो ।
13
और मैं यह अपने लिये उचित समझता हूँ, कि जब तक मैं इस तम्बू-रूपी शरीर में हूँ, तब तक तुम्हें सुधि दिलाकर सावधान करता रहूँ।
14
क्योंकि मैं यह जानता हूँ, मेरे तम्बू के गिराए जाने का समय शीघ्र आनेवाला है, जैसा कि हमारे प्रभु यीशु मसीह ने मुझ पर प्रकट किया है।
15
इसलिए मैं ऐसा यत्न करूँगा, कि मेरे संसार से जाने के बाद भी तुम इन सब बातों को सर्वदा याद कर सको।
16
क्योंकि जब हमने तुम्हें अपने प्रभु यीशु मसीह की सामर्थ्य का, और आगमन का समाचार दिया था तो चतुराई से गढ़ी हुई कहानियों पर विश्वास नहीं किया था वरन् हमने आप ही उसके प्रताप को देखा था।
17
कि उसने परमेश्वर पिता से आदर और महिमा पाई, जब उस प्रतापमय महिमा में से यह वाणी आई, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अति प्रसन्न हूँ।” (भज. 2:7, यशा. 42:1)
18
और जब हम उसके साथ पवित्र पर्वत पर थे, तो स्वर्ग से यही वाणी आते सुनी।