\r\n
\r\n\r\n1\r\nजब भीड़ उस पर गिरी पड़ती थी, और परमेश्वर का वचन सुनती थी, और वह गन्नेसरत की झील* के किनारे पर खड़ा था, तो ऐसा हुआ। \r\n\r\n\r\n2\r\nकि उसने झील के किनारे दो नावें लगी हुई देखीं, और मछवे उन पर से उतरकर जाल धो रहे थे। \r\n\r\n\r\n3\r\nउन नावों में से एक पर, जो शमौन की थी, चढ़कर, उसने उससे कहा की, कि किनारे से थोड़ा हटा ले चले, तब वह बैठकर लोगों को नाव पर से उपदेश देने लगा।\r\n\r\n\r\n4\r\nजब वह बातें कर चुका, तो शमौन से कहा, “गहरे में ले चल, और मछलियाँ पकड़ने के लिये अपने जाल डालो।” \r\n\r\n\r\n5\r\nशमौन ने उसको उत्तर दिया, “हे स्वामी, हमने सारी रात मेहनत की और कुछ न पकड़ा; तो भी तेरे कहने से जाल डालूँगा।” \r\n\r\n\r\n6\r\nजब उन्होंने ऐसा किया, तो बहुत मछलियाँ घेर लाए, और उनके जाल फटने लगे। \r\n\r\n\r\n7\r\nइस पर उन्होंने अपने साथियों को जो दूसरी नाव पर थे, संकेत किया, कि आकर उनकी सहायता करें: और उन्होंने आकर, दोनों नाव यहाँ तक भर लीं कि वे डूबने लगीं।\r\n\r\n\r\n8\r\nयह देखकर शमौन पतरस यीशु के पाँवों पर गिरा, और कहा, “हे प्रभु, मेरे पास से जा, क्योंकि मैं पापी मनुष्य हूँ!” \r\n\r\n\r\n9\r\nक्योंकि इतनी मछलियों के पकड़े जाने से उसे और उसके साथियों को बहुत अचम्भा हुआ; \r\n\r\n\r\n10\r\nऔर वैसे ही जब्दी के पुत्र याकूब और यूहन्ना को भी, जो शमौन के सहभागी थे, अचम्भा हुआ तब यीशु ने शमौन से कहा, “मत डर, अब से तू मनुष्यों को पकड़ा करेगा।” \r\n\r\n\r\n11\r\nऔर वे नावों को किनारे पर ले आए और सब कुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिए।\r\n\r\nकोढ़ी का शुद्ध किया जाना\n\r\n
\r\n\r\n\r\n12\r\nजब वह किसी नगर में था, तो वहाँ कोढ़ से भरा हुआ एक मनुष्य आया, और वह यीशु को देखकर मुँह के बल गिरा, और विनती की, “हे प्रभु यदि तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है।” \r\n\r\n\r\n13\r\nउसने हाथ बढ़ाकर उसे छुआ और कहा, “मैं चाहता हूँ, तू शुद्ध हो जा।” और उसका कोढ़ तुरन्त जाता रहा।\r\n\r\n
\r\n\r\n\r\n14\r\nतब उसने उसे चिताया, “किसी से न कह, परन्तु जा के अपने आप को याजक को दिखा, और अपने शुद्ध होने के विषय में जो कुछ मूसा ने चढ़ावा ठहराया है उसे चढ़ा कि लोगों पर गवाही हो।” (लैव्य. 14:2-32)\r\n\r\n\r\n15\r\nपरन्तु उसकी चर्चा और भी फैलती गई, और बड़ी भीड़ उसकी सुनने के लिये और अपनी बीमारियों से चंगे होने के लिये इकट्ठी हुई। \r\n\r\n\r\n16\r\nपरन्तु वह निर्जन स्थानों में अलग जाकर प्रार्थना किया करता था। \nयीशु द्वारा लकवे के मारे को चंगा करना\r\n\r\n\r\n17\r\nऔर एक दिन ऐसा हुआ कि वह उपदेश दे रहा था, और फरीसी और व्यवस्थापक वहाँ बैठे हुए थे, जो गलील और यहूदिया के हर एक गाँव से, और यरूशलेम से आए थे; और चंगा करने के लिये प्रभु की सामर्थ्य उसके साथ थी।\r\n\r\n\r\n18\r\nऔर देखो कई लोग एक मनुष्य को जो लकवे का रोगी था, खाट पर लाए, और वे उसे भीतर ले जाने और यीशु के सामने रखने का उपाय ढूँढ़ रहे थे। \r\n\r\n\r\n19\r\nऔर जब भीड़ के कारण उसे भीतर न ले जा सके तो उन्होंने छत पर चढ़कर और खपरैल हटाकर, उसे खाट समेत बीच में यीशु के सामने उतार दिया।\r\n\r\n\r\n20\r\nउसने उनका विश्वास देखकर उससे कहा, “हे मनुष्य, तेरे पाप क्षमा हुए।” \r\n\r\n\r\n21\r\nतब शास्त्री और फरीसी विवाद करने लगे, “यह कौन है, जो परमेश्वर की निन्दा करता है? परमेश्वर को छोड़ कौन पापों की क्षमा कर सकता है?”\r\n\r\n\r\n22\r\nयीशु ने उनके मन की बातें जानकर, उनसे कहा, “तुम अपने मनों में क्या विवाद कर रहे हो? \r\n\r\n\r\n23\r\nसहज क्या है? क्या यह कहना, कि ‘तेरे पाप क्षमा हुए,’ या यह कहना कि ‘उठ और चल फिर?’ \r\n\r\n\r\n24\r\nपरन्तु इसलिए कि तुम जानो कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का भी अधिकार है।” उसने उस लकवे के रोगी से कहा, “मैं तुझ से कहता हूँ, उठ और अपनी खाट उठाकर अपने घर चला जा।”\r\n\r\n\r\n25\r\nवह तुरन्त उनके सामने उठा, और जिस पर वह पड़ा था उसे उठाकर, परमेश्वर की बड़ाई करता हुआ अपने घर चला गया। \r\n\r\n\r\n26\r\nतब सब चकित हुए और परमेश्वर की बड़ाई करने लगे, और बहुत डरकर कहने लगे, “आज हमने अनोखी बातें देखी हैं।”\r\n\r\nमत्ती का बुलाया जाना\n\r\n
\r\n\r\n\r\n27\r\nऔर इसके बाद वह बाहर गया, और लेवी नाम एक चुंगी लेनेवाले को चुंगी की चौकी पर बैठे देखा, और उससे कहा, “मेरे पीछे हो ले।” \r\n\r\n\r\n28\r\nतब वह सब कुछ छोड़कर उठा, और उसके पीछे हो लिया।\r\n\r\n
\r\n\r\n\r\n29\r\nऔर लेवी ने अपने घर में उसके लिये एक बड़ा भोज* दिया; और चुंगी लेनेवालों की और अन्य लोगों की जो उसके साथ भोजन करने बैठे थे एक बड़ी भीड़ थी। \r\n\r\n\r\n30\r\nऔर फरीसी और उनके शास्त्री उसके चेलों से यह कहकर कुड़कुड़ाने लगे, “तुम चुंगी लेनेवालों और पापियों के साथ क्यों खाते-पीते हो?” \r\n\r\n\r\n31\r\nयीशु ने उनको उत्तर दिया, “वैद्य भले चंगों के लिये नहीं, परन्तु बीमारों के लिये अवश्य है। \r\n\r\n\r\n32\r\nमैं धर्मियों को नहीं, परन्तु पापियों को मन फिराने के लिये बुलाने आया हूँ।”\r\n\r\n\r\n33\r\nऔर उन्होंने उससे कहा, “यूहन्ना के चेले तो बराबर उपवास रखते और प्रार्थना किया करते हैं, और वैसे ही फरीसियों के भी, परन्तु तेरे चेले तो खाते-पीते हैं।” \r\n\r\n\r\n34\r\nयीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम बारातियों से जब तक दूल्हा उनके साथ रहे, उपवास करवा सकते हो? \r\n\r\n\r\n35\r\nपरन्तु वे दिन आएँगे, जिनमें दूल्हा उनसे अलग किया जाएगा, तब वे उन दिनों में उपवास करेंगे।”\r\n\r\n\r\n36\r\nउसने एक और दृष्टान्त* भी उनसे कहा: “कोई मनुष्य नये वस्त्र में से फाड़कर पुराने वस्त्र में पैबन्द नहीं लगाता, नहीं तो नया फट जाएगा और वह पैबन्द पुराने में मेल भी नहीं खाएगा।\r\n\r\n\r\n37\r\nऔर कोई नया दाखरस पुरानी मशकों में नहीं भरता, नहीं तो नया दाखरस मशकों को फाड़कर बह जाएगा, और मशकें भी नाश हो जाएँगी। \r\n\r\n\r\n38\r\nपरन्तु नया दाखरस नई मशकों में भरना चाहिये। \r\n\r\n\r\n39\r\nकोई मनुष्य पुराना दाखरस पीकर नया नहीं चाहता क्योंकि वह कहता है, कि पुराना ही अच्छा है।”\r\n\r\n
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अध्याय 5
1
जब भीड़ उस पर गिरी पड़ती थी, और परमेश्वर का वचन सुनती थी, और वह गन्नेसरत की झील* के किनारे पर खड़ा था, तो ऐसा हुआ।
2
कि उसने झील के किनारे दो नावें लगी हुई देखीं, और मछवे उन पर से उतरकर जाल धो रहे थे।
3
उन नावों में से एक पर, जो शमौन की थी, चढ़कर, उसने उससे कहा की, कि किनारे से थोड़ा हटा ले चले, तब वह बैठकर लोगों को नाव पर से उपदेश देने लगा।
4
जब वह बातें कर चुका, तो शमौन से कहा, “गहरे में ले चल, और मछलियाँ पकड़ने के लिये अपने जाल डालो।”
5
शमौन ने उसको उत्तर दिया, “हे स्वामी, हमने सारी रात मेहनत की और कुछ न पकड़ा; तो भी तेरे कहने से जाल डालूँगा।”
6
जब उन्होंने ऐसा किया, तो बहुत मछलियाँ घेर लाए, और उनके जाल फटने लगे।
7
इस पर उन्होंने अपने साथियों को जो दूसरी नाव पर थे, संकेत किया, कि आकर उनकी सहायता करें: और उन्होंने आकर, दोनों नाव यहाँ तक भर लीं कि वे डूबने लगीं।
8
यह देखकर शमौन पतरस यीशु के पाँवों पर गिरा, और कहा, “हे प्रभु, मेरे पास से जा, क्योंकि मैं पापी मनुष्य हूँ!”
9
क्योंकि इतनी मछलियों के पकड़े जाने से उसे और उसके साथियों को बहुत अचम्भा हुआ;
10
और वैसे ही जब्दी के पुत्र याकूब और यूहन्ना को भी, जो शमौन के सहभागी थे, अचम्भा हुआ तब यीशु ने शमौन से कहा, “मत डर, अब से तू मनुष्यों को पकड़ा करेगा।”
11
और वे नावों को किनारे पर ले आए और सब कुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिए।
कोढ़ी का शुद्ध किया जाना
12
जब वह किसी नगर में था, तो वहाँ कोढ़ से भरा हुआ एक मनुष्य आया, और वह यीशु को देखकर मुँह के बल गिरा, और विनती की, “हे प्रभु यदि तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है।”
13
उसने हाथ बढ़ाकर उसे छुआ और कहा, “मैं चाहता हूँ, तू शुद्ध हो जा।” और उसका कोढ़ तुरन्त जाता रहा।
14
तब उसने उसे चिताया, “किसी से न कह, परन्तु जा के अपने आप को याजक को दिखा, और अपने शुद्ध होने के विषय में जो कुछ मूसा ने चढ़ावा ठहराया है उसे चढ़ा कि लोगों पर गवाही हो।” (लैव्य. 14:2-32)
15
परन्तु उसकी चर्चा और भी फैलती गई, और बड़ी भीड़ उसकी सुनने के लिये और अपनी बीमारियों से चंगे होने के लिये इकट्ठी हुई।
16
परन्तु वह निर्जन स्थानों में अलग जाकर प्रार्थना किया करता था।
यीशु द्वारा लकवे के मारे को चंगा करना
17
और एक दिन ऐसा हुआ कि वह उपदेश दे रहा था, और फरीसी और व्यवस्थापक वहाँ बैठे हुए थे, जो गलील और यहूदिया के हर एक गाँव से, और यरूशलेम से आए थे; और चंगा करने के लिये प्रभु की सामर्थ्य उसके साथ थी।
18
और देखो कई लोग एक मनुष्य को जो लकवे का रोगी था, खाट पर लाए, और वे उसे भीतर ले जाने और यीशु के सामने रखने का उपाय ढूँढ़ रहे थे।
19
और जब भीड़ के कारण उसे भीतर न ले जा सके तो उन्होंने छत पर चढ़कर और खपरैल हटाकर, उसे खाट समेत बीच में यीशु के सामने उतार दिया।
20
उसने उनका विश्वास देखकर उससे कहा, “हे मनुष्य, तेरे पाप क्षमा हुए।”
21
तब शास्त्री और फरीसी विवाद करने लगे, “यह कौन है, जो परमेश्वर की निन्दा करता है? परमेश्वर को छोड़ कौन पापों की क्षमा कर सकता है?”
22
यीशु ने उनके मन की बातें जानकर, उनसे कहा, “तुम अपने मनों में क्या विवाद कर रहे हो?
23
सहज क्या है? क्या यह कहना, कि ‘तेरे पाप क्षमा हुए,’ या यह कहना कि ‘उठ और चल फिर?’
24
परन्तु इसलिए कि तुम जानो कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का भी अधिकार है।” उसने उस लकवे के रोगी से कहा, “मैं तुझ से कहता हूँ, उठ और अपनी खाट उठाकर अपने घर चला जा।”
25
वह तुरन्त उनके सामने उठा, और जिस पर वह पड़ा था उसे उठाकर, परमेश्वर की बड़ाई करता हुआ अपने घर चला गया।
26
तब सब चकित हुए और परमेश्वर की बड़ाई करने लगे, और बहुत डरकर कहने लगे, “आज हमने अनोखी बातें देखी हैं।”
मत्ती का बुलाया जाना
27
और इसके बाद वह बाहर गया, और लेवी नाम एक चुंगी लेनेवाले को चुंगी की चौकी पर बैठे देखा, और उससे कहा, “मेरे पीछे हो ले।”
28
तब वह सब कुछ छोड़कर उठा, और उसके पीछे हो लिया।
29
और लेवी ने अपने घर में उसके लिये एक बड़ा भोज* दिया; और चुंगी लेनेवालों की और अन्य लोगों की जो उसके साथ भोजन करने बैठे थे एक बड़ी भीड़ थी।
30
और फरीसी और उनके शास्त्री उसके चेलों से यह कहकर कुड़कुड़ाने लगे, “तुम चुंगी लेनेवालों और पापियों के साथ क्यों खाते-पीते हो?”
31
यीशु ने उनको उत्तर दिया, “वैद्य भले चंगों के लिये नहीं, परन्तु बीमारों के लिये अवश्य है।
32
मैं धर्मियों को नहीं, परन्तु पापियों को मन फिराने के लिये बुलाने आया हूँ।”
33
और उन्होंने उससे कहा, “यूहन्ना के चेले तो बराबर उपवास रखते और प्रार्थना किया करते हैं, और वैसे ही फरीसियों के भी, परन्तु तेरे चेले तो खाते-पीते हैं।”
34
यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम बारातियों से जब तक दूल्हा उनके साथ रहे, उपवास करवा सकते हो?
35
परन्तु वे दिन आएँगे, जिनमें दूल्हा उनसे अलग किया जाएगा, तब वे उन दिनों में उपवास करेंगे।”
36
उसने एक और दृष्टान्त* भी उनसे कहा: “कोई मनुष्य नये वस्त्र में से फाड़कर पुराने वस्त्र में पैबन्द नहीं लगाता, नहीं तो नया फट जाएगा और वह पैबन्द पुराने में मेल भी नहीं खाएगा।
37
और कोई नया दाखरस पुरानी मशकों में नहीं भरता, नहीं तो नया दाखरस मशकों को फाड़कर बह जाएगा, और मशकें भी नाश हो जाएँगी।
38
परन्तु नया दाखरस नई मशकों में भरना चाहिये।
39
कोई मनुष्य पुराना दाखरस पीकर नया नहीं चाहता क्योंकि वह कहता है, कि पुराना ही अच्छा है।”