1
यहूदा की ओर से जो यीशु मसीह का दास और याकूब का भाई है, उन लोगों के लिए जो बुलाए गए हैं, जो परमेश्वर पिता में प्रिय और यीशु मसीह के लिये सुरक्षित और अलग रखे गए हैं।
2
दया, शान्ति और प्रेम तुम्हें बहुतायत से प्राप्त होता रहे।
3
हे प्रियों, जब मैं तुम्हें उद्धार के उस विषय में लिखने के लिए अत्यन्त उत्सुक था, जिसमें हम सब सहभागी हैं; तो मैंने तुम्हें यह समझाना आवश्यक जाना कि उस विश्वास के लिये पूरा यत्न करो जो पवित्र लोगों को एक ही बार सौंपा गया था।
4
क्योंकि कितने ऐसे मनुष्य चुपके से हम में आ मिले हैं,जो बहुत पहले से ही इस दण्ड के लिये चिन्हित किए गए थे*: ये अधर्मी मनुष्य हैं, जो हमारे परमेश्वर के अनुग्रह को लुचपन में बदल डालते है, और हमारे एकमात्र प्रभु परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह का इन्कार करते हैं।
5
यद्यपि तुम सब बात एक बार जान चुके हो, तो भी मैं तुम्हें इस बात की सुधि दिलाना चाहता हूँ, कि प्रभु ने अपने लोगों को मिस्र देश से छुड़ाने के बाद, विश्वास न करनेवालों को नाश कर दिया। (इब्रा. 3:16-19, गिन. 14:22-23,30)
6
और जिन स्वर्गदूतों ने अपने अधिकार के पद को स्थिर न रखा वरन् अपने उचित निवासस्थान को छोड़ दिया, उसने उनको भी न्याय के उस बड़े दिन के लिये अंधकार में अनन्त जंजीरों में रखा है ।
7
जिस रीति से सदोम और गमोरा और उनके आस-पास के नगर, जो इनके समान व्यभिचारी हो गए थे और भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवों के साथ शारीरिक रिश्ते बनाने का पाप कर रहे थे; जिसके कारण उन्हें अनंत काल के आग में झोके जाने के लिए ठहराया गया और हमारे लिए ऐसे पापों से बचने का उदहारण ठहराया। (उत्प. 19:4-25, व्य. 29:23, 2 पत. 2:6)
8
उसी रीति से ये स्वप्न देखने वाले भी अपने-अपने शरीर को अशुद्ध करते*, और अधिकार को तुच्छ जानते हैं; और ऊँचे पदवालों को बुरा-भला कहते हैं।
9
परन्तु प्रधान स्वर्गदूत मीकाईल ने, जब शैतान से मूसा के शव के विषय में वाद-विवाद कर रहा था, उसको बुरा-भला कहके दोष लगाने का साहस न किया; परन्तु यह कहा, “प्रभु तुझे डाँटे।”
10
ये लोग जिन बातों को नहीं जानते, उन के विषय में बुरा-भला कहते हैं; पर जिन बातों को निर्बुद्धि पशुओं के समान स्वाभाविक रूप से जानते ही हैं, उन बातों में अपने आप को नाश कर लेते हैं।
11
उन पर हाय! क्योंकि उन्होंने कैन के समान चाल चला, और धन के लाभ/लालच के लिये बिलाम के समान भ्रष्ट हो गए हैं और कोरह के समान विरोध करके नाश हुए हैं। (उत्प. 4:3-8, गिन. 16:19-35, गिन. 22:7, 2 पत. 2:15, 1 यूह. 3:12, गिन. 24:12-14)
12
ये तुम्हारे प्रेम-भोजों में तुम्हारे साथ खाते-पीते, समुद्र में छिपी हुई खतरनाक चट्टानों के सामान हैं , जो बेधड़क अपना ही पेट भरते हैं। ये निर्जल बादल हैं; जिन्हें हवा उड़ा ले जाती है; पतझड़ के निष्फल पेड़ हैं, जो दो बार मर चुके हैं; और जड़ से उखड़ गए हैं; (2 पत. 2:17, इफि. 4:14, यूह. 15:4-6)
13
ये समुद्र की प्रचण्ड लहरें हैं, जो अपनी लज्जा का फेन भड़काते हैं। ये भटकते तारे हैं, जिनके लिये सदा काल तक घोर अंधकार रखा गया है। (यशा. 57:20)
14
और हनोक ने भी, जो आदम से सातवीं पीढ़ी में था, इनके विषय में यह भविष्यद्वाणी की, “देखो, प्रभु अपने लाखों पवित्रों के साथ आता है। (व्य. 33:2, 2 थिस्स. 1:7-8)
15
कि सब का न्याय करे, और सब अधर्मियों को उनके अधर्म के सब कामों के विषय में जो उन्होंने अधर्मी रीति से किए हैं, और उन सब कठोर बातों के विषय में जो अधर्मी पापियों ने परमेश्वर के विरोध में कही हैं, दोषी ठहराए।”
16
ये तो कुड़कुड़ानेवाले, शिकायत करनेवाले और अपने अभिलाषाओं के अनुसार चलनेवाले हैं; और अपने मुँह से घमण्ड की बातें बोलते हैं और लाभ के लिये दूसरों की चापलूसी करते हैं।
प्रयत्नशील बने रहो
17
पर हे प्रियों, तुम उन बातों को स्मरण रखो; जो हमारे प्रभु यीशु मसीह के प्रेरित पहले कह चुके हैं।
18
उन्होंने तुम से कहा कि, “अंत के दिनों में ऐसे ठट्ठा करनेवाले होंगे, जो अपने अधर्म की अभिलाषाओं के अनुसार चलेंगे।”
19
ये तो वे हैं, जो फूट डालते हैं; ये शारीरिक लोग हैं, जिनमें आत्मा नहीं।
20
पर हे प्रियों, तुम अपने अति पवित्र विश्वास में अपनी बढ़ते हुए और पवित्र आत्मा में प्रार्थना करते हुए,
21
अपने आप को परमेश्वर के प्रेम में बनाए रखो; और अनन्त जीवन के लिये हमारे प्रभु यीशु मसीह की दया की आशा करते रहो।
22
और उन पर, जो शंका में हैं दया करो।
23
और बहुतों को आग में से झपटकर निकालो, और बहुतों पर भय के साथ दया करो; वरन् उस वस्त्र से भी घृणा करो जो शरीर के द्वारा अशुद्ध हो गया है।
परमेश्वर की स्तुति
24
अब जो तुम्हें ठोकर खाने से बचा सकता है*, और अपनी महिमा की भरपूरी के सामने मगन और निर्दोष करके खड़ा कर सकता है;
25
हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा, उस एकमात्र उद्धारकर्ता परमेश्वर की महिमा, गौरव, पराक्रम और अधिकार, जैसा सनातन काल से है, अब भी हो और युगानुयुग होती रहे। आमीन।