1
हे भाइयों, जब मैं परमेश्वर का भेद सुनाता हुआ तुम्हारे पास आया, तो वचन या ज्ञान की उत्तमता के साथ नहीं आया।
2
क्योंकि मैंने यह ठान लिया था, कि तुम्हारे बीच यीशु मसीह, वरन् क्रूस पर चढ़ाए गए मसीह को छोड़ और किसी बात को न जानूँ।
3
मैं निर्बलता और भय के साथ, और बहुत थरथराते हुए तुम्हारे साथ रहा।
4
और मेरे वचन, और मेरे प्रचार में ज्ञान की लुभानेवाली बातें नहीं थी *; परन्तु आत्मा और सामर्थ्य का प्रमाण था,
5
कि तुम्हारा विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं, परन्तु परमेश्वर की सामर्थ्य पर निर्भर हो।
6
फिर भी सिद्ध लोगों में हम ज्ञान सुनाते हैं परन्तु इस संसार का और इस संसार के नाश होनेवाले हाकिमों का ज्ञान नहीं।
7
परन्तु हम परमेश्वर का गुप्त ज्ञान, भेद की रीति पर बताते हैं, जिसे परमेश्वर ने सनातन से हमारी महिमा के लिये ठहराया।
8
जिसे इस संसार के हाकिमों में से किसी ने नहीं जाना, क्योंकि यदि जानते, तो महिमा के प्रभु को क्रूस पर न चढ़ाते। (प्रेरि. 13:27)
9
परन्तु जैसा लिखा है,
“जो आँख ने नहीं देखा *, और कान ने नहीं सुना,
और जो बातें मनुष्य के चित्त में कभी आयी नहीं, वे ही हैं,
जो परमेश्वर ने अपने से प्रेम रखनेवालों के लिये तैयार की हैं।” (यशा. 64:4)
10
परन्तु परमेश्वर ने उनको अपनी आत्मा के द्वारा हम पर प्रगट किया; क्योंकि आत्मा सब बातें, यानी परमेश्वर की गहराई की बातें भी जाँचता है।
11
मनुष्यों में से कौन, किसी और मनुष्य की बातें जानता है, मनुष्य की आत्मा के अलावा जो उसमें है? वैसे ही परमेश्वर की बातें भी कोई नहीं जानता, केवल परमेश्वर का आत्मा। (नीति. 20:27)
12
परन्तु हमें संसार की आत्मा* नहीं, परन्तु वह आत्मा मिली है, जो परमेश्वर की ओर से है, कि हम उन बातों को जानें, जो परमेश्वर ने हमें दी हैं।
13
ये बातें हम उन शब्दों में नहीं बोलते हैं जो मनुष्य को ज्ञान सिखाता है परन्तु उन शब्दों में जो पवित्र आत्मा हमें सिखाता है, आत्मिक बातों को आत्मा के द्वारा, आत्मिक लोगों को समझाता है।
14
परन्तु शारीरिक मनुष्य परमेश्वर के आत्मा की बातें ग्रहण नहीं करता, क्योंकि वे उसकी दृष्टि में मूर्खता की बातें हैं और न वह उन्हें जान सकता है क्योंकि उनकी जाँच आत्मिक रीति से होती है।
15
आत्मिक* जन सब कुछ जाँचता है, परन्तु वह आप किसी से सही नहीं जांचा जाता ।
16
क्योंकि “प्रभु का मन किस ने जाना है, कि उसे सिखाए?” परन्तु हमारे पास प्रभु का मन है।